मंगलवार, 15 जुलाई
मेरी छोटी भेड़ों की देखभाल कर।—यूह. 21:16.
प्रेषित पतरस भी एक प्राचीन था और उसने दूसरे प्राचीनों से गुज़ारिश की, “चरवाहों की तरह परमेश्वर के झुंड की देखभाल करो।” (1 पत. 5:1-4) अगर आप एक प्राचीन हैं, तो हम जानते हैं कि आप अपने भाई-बहनों से प्यार करते हैं और चरवाहे की तरह उनकी देखभाल करना चाहते हैं। लेकिन कई बार शायद आपको लगे कि आपके पास इतने सारे काम हैं या आप इतने थक गए हैं कि आप यह ज़िम्मेदारी नहीं निभा पाएँगे। ऐसे में आप क्या कर सकते हैं? आपके मन में जो भी चिंता-परेशानियाँ हैं, वे यहोवा को बताइए। पतरस ने लिखा, “अगर कोई सेवा करता है तो उस शक्ति पर निर्भर होकर करे जो परमेश्वर देता है।” (1 पत. 4:11) हो सकता है, आपके भाई-बहन ऐसी समस्याओं से जूझ रहे हों जो इस दुनिया में पूरी तरह सुलझायी नहीं जा सकतीं। लेकिन याद रखिए, आप जितना भाई-बहनों के लिए कर सकते हैं, उससे कहीं ज़्यादा ‘प्रधान चरवाहा’ यीशु मसीह उनके लिए कर सकता है। वह आज भी उनकी मदद कर सकता है और नयी दुनिया में भी करेगा। यह भी याद रखिए कि परमेश्वर प्राचीनों से बस यह चाहता है कि वे भाई-बहनों से प्यार करें, चरवाहों की तरह उनकी देखभाल करें और “झुंड के लिए एक मिसाल” बनें। प्र23.09 पेज 29-30 पै 13-14
बुधवार, 16 जुलाई
यहोवा जानता है कि बुद्धिमानों के तर्क बेकार हैं।—1 कुरिं. 3:20.
हमें दुनिया के लोगों की सोच नहीं अपनानी चाहिए। अगर हम दुनिया के लोगों की तरह सोचें, तो हम यहोवा से दूर जा सकते हैं और उसके स्तरों को नज़रअंदाज़ करने लग सकते हैं। (1 कुरिं. 3:19) “दुनिया की बुद्धि” यानी दुनिया के लोगों की सोच है कि हम अपनी इच्छाएँ पूरी करें और परमेश्वर की ना सुनें। बीते ज़माने में पिरगमुन और थुआतीरा के लोगों की भी ऐसी ही सोच थी। वहाँ जिधर देखो उधर मूर्तिपूजा और अनैतिक काम हो रहे थे। और कुछ मसीहियों पर भी वहाँ के लोगों की सोच का असर होने लगा था और वे अनैतिक कामों को बरदाश्त करने लगे थे। इसलिए वहाँ की मंडलियों को यीशु ने सख्ती से सलाह दी। (प्रका. 2:14, 20) आज हम पर भी दुनिया की सोच अपनाने का दबाव आता है। शायद हमारे परिवारवाले या जान-पहचानवाले हमसे कहें कि हम कुछ ज़्यादा ही सख्ती बरत रहे हैं, थोड़ा-बहुत तो चलता है। जैसे, वे शायद कहें, ‘अपनी इच्छाएँ पूरी करने में क्या बुराई है? आज दुनिया कहाँ-से-कहाँ पहुँच गयी है और तुम अब भी बाइबल पकड़े बैठे हो!’ कभी-कभी हमें शायद लगे कि यहोवा की तरफ से जो हिदायतें दी जाती हैं, उनसे समझ में नहीं आता कि क्या करना है और क्या नहीं। ऐसे में हम शायद ‘जो लिखा है उससे आगे जाने’ की या कुछ और नियम बनाने की सोचने लगें।—1 कुरिं. 4:6. प्र23.07 पेज 16 पै 10-11
गुरुवार, 17 जुलाई
सच्चा दोस्त हर समय प्यार करता है और मुसीबत की घड़ी में भाई बन जाता है।—नीति. 17:17.
यीशु की माँ मरियम को हिम्मत चाहिए थी। उसकी अब तक शादी नहीं हुई थी, लेकिन वह गर्भवती होनेवाली थी। उसे बच्चों को पालने-पोसने का कोई तजुरबा नहीं था, पर उसे एक ऐसे बच्चे की परवरिश करनी थी जो आगे चलकर मसीहा बनता। उसने अब तक किसी आदमी के साथ संबंध नहीं रखे थे, पर वह माँ बननेवाली थी। वह अपने मंगेतर यूसुफ को यह सब कैसे समझाती? (लूका 1:26-33) मरियम को हिम्मत कैसे मिली? उसने दूसरों से मदद ली। जैसे उसने जिब्राईल से कहा कि वह इस बारे में उसे और जानकारी दे। (लूका 1:34) फिर कुछ ही समय बाद वह एक लंबा सफर तय करके यहूदा के “पहाड़ी इलाके” में अपनी रिश्तेदार इलीशिबा से मिलने गयी। इलीशिबा ने मरियम की तारीफ की और यहोवा की प्रेरणा से मरियम के होनेवाले बच्चे के बारे में एक भविष्यवाणी की। (लूका 1:39-45) तब मरियम ने कहा कि यहोवा ने “अपने बाज़ुओं की ताकत दिखायी है।” (लूका 1:46-51) जिब्राईल स्वर्गदूत और इलीशिबा के ज़रिए यहोवा ने मरियम को हिम्मत दी। प्र23.10 पेज 14-15 पै 10-12